आपने अब तक डायबिटीज के दो ही प्रकार सुने होंगे टाइप-1 और टाइप-2। टाइप-1 का कारण आनुवांशिक माना जाता है वहीं टाइप-2 लाइफस्टाइल से जुड़ी बीमारी है। लेकिन इन दिनों लोगों में आधुनिक जांचों के दौरान बच्चों व बड़ों में कुछ अन्य डायबिटीज के प्रकार भी सामने आ रहे हैं-
जीडीएम:
जेस्टेशनल डायबिटीज मेलिटस। प्रेग्नेंसी के दौरान महिला को होने वाला प्रकार है। कुछ मामलों में गर्भस्थ शिशु का विकास प्रभावित होता है। हालांकि डिलीवरी के बाद जीडीएम की बीमारी नहीं रहती। संतुलित भोजन लेेने व ब्लड शुगर लेवल कंट्रोल करने के लिए इंसुलिन देते हैं।
एलएडीए:
इसे लेटेंट ऑटोइम्यून डायबिटीज ऑफ एडल्ट्स कहते हैं। यह टाइप-१ डायबिटीज का एक प्रकार है जो ३० वर्ष की उम्र से अधिक के लोगों को होती है। रोगी को सही डाइट लेने, एक्सरसाइज करने व इंसुलिन बनने की क्षमता बढ़ाने के लिए दवा देते हैं।
एमओडीवाई:
यानी मैच्योरिटी ऑनसेट डायबिटीज ऑफ द यंग। यह टाइप-१ या टाइप-२ से अलग है। इसके मामले बेहद दुर्लभ हैं। यह डायबिटीज, परिवार में पीढिय़ों से चली आ रही होती है। मरीज को दवाओं के अलावा इंसुलिन पर निर्भर रहना पड़ता है।
डीआईडी:
ड्रग इंड्यूस्ड डायबिटीज। किसी रोग के इलाज में खासतौर पर ली जाने वाली एंटीडिप्रेशन, एंटीसाइकोटिक जैसी दवाओं से होने वाले दुष्प्रभाव से भी इंसुलिन शरीर की जरूरत के अनुसार नहीं बनता। ऐसे में ब्लड में शुगर की मात्रा बढ़ती है। कॉर्टिकॉस्टेरॉइड दवाएं देते हैं।
एफसीपीडी:
फाइब्रोकैल्कुलस पेन्क्रिएटिक डायबिटीज। पर्याप्त मात्रा में प्रोटीन व पोषक तत्त्व न मिलने से पेन्क्रियाज को होने वाले नुकसान से एफसीपीडी होता है। पेन्क्रियाज का काम लंबे समय से प्रभावित होने से ऐसा होता है। इंसुलिन से पेन्क्रियाज की कार्यक्षमता बढ़ाते हैं।
एसडी:
इसे सैकंडरी मधुमेह भी कहते हैं। इसमें कई कारणों जैसे ऑटोइम्यून व जेनेटिक डिसऑर्डर,एंडोक्राइन रोग आदि से ब्लड शुगर लेवल अस्थिर रहता है जो मधुमेह की आशंका बढ़ाता है। रोग-मरीज की स्थिति के अनुसार दवा व इंसुलिन की मात्रा तय होती है।
केपीडी:
कीटोसिस प्रोन डायबिटीज यानी केपीडी जो छोटे बच्चों को होती है। इसमें टाइप-१ की तरह बच्चे के यूरिन में कीटोंस तो निकलते हैं लेकिन स्थिति गंभीर नहीं होती। टाइप-१ और टाइप-२ दोनों प्रकार के लक्षण सामने आते हैं व दवाओं से इलाज करते हैं।
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